नेपाल में चीन हुआ सक्रिय 

ओली की जगह पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी पर लगाया दांव 

सार

चीन फिर से नेपाल में सक्रिय है। वह नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं को एकजुट करने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए चीन, केपी शर्मा ओली की जगह विद्या देवी भंडारी का उपयोग कर रहा है। चीन चाहता है कि ओली की पार्टी सत्ता में बनी रहे।

उमेश चन्द्र त्रिपाठी 

काठमांडू! चीन एक बार फिर नेपाल में एक्टिव हो गया है। इस बार वह नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं को एक साथ आने और एक कार्यकारी गठबंधन बनाने के लिए जोर दे रहा है। इसके लिए उसने केपी शर्मा ओली की जगह पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को चुना है। 

हालांकि, वह चाहता है कि नेपाल की सत्ता में ओली की यूएमएल ही बनी रहे। अगर नेपाल में कम्युनिस्ट गठबंधन मजबूत होता है तो इससे भारत की टेंशन बढ़ सकती है, क्योंकि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों को चीन समर्थक माना जाता है।

समाचार के मुताबिक नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी इन दिनों चीन की यात्रा पर हैं। यह यात्रा चीन के आधिकारिक निमंत्रण पर हो रही है। इस दौरान उन्होंने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेन के साथ गांसू प्रांत में आयोजित एक कार्यक्रम में भी शामिल हुईं। इस कार्यक्रम में नेपाल-चीन संबंधों को मजबूत करने और देश में एक नया कम्युनिस्ट गठबंधन बनाने की रणनीति पर बात की गई। हालांकि, नेपाल के प्रबुद्ध वर्ग में इस दौरे को देश की राजनीति में चीन के सीधे हस्तक्षेप की तरह देखा जा रहा है।

दरअसल नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियों ने जनता की काफी सद्भावना और समर्थन खो दिया है, जिसका लाभ नेपाली कांग्रेस और राजतंत्र समर्थकों को मिला है, जो नेपाल की संवैधानिक राजशाही और ‘हिंदू राष्ट्र’ का दर्जा बहाल करना चाहते हैं। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में नेपाल की दो मुख्य कम्युनिस्ट पार्टियों-नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी सेंटर (सीपीएन-एमसी) को फिर से एकजुट करने के लिए कई प्रयास किए हैं। हालांकि, ये सभी प्रयास दोनों पार्टियों के अध्यक्षों-सीपीएन-यूएमएल के केपी शर्मा ओली और सीपीएन-एमसी के पुष्प कमल दहल के बीच आपसी मतभेदों और अहंकार की लड़ाई के कारण विफल हो गए हैं।

दोनों दलों ने चीन की मध्यस्थता में हुए एक समझौते के तहत संसदीय चुनावों की पूर्व संध्या पर अक्टूबर 2017 में गठबंधन बनाने की घोषणा की थी। दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा और निचले सदन ( प्रतिनिधि सभा ) तथा सात प्रांतीय विधानसभाओं में से छह में बहुमत हासिल किया। मई 2018 में दोनों पार्टियों का औपचारिक रूप से विलय होकर एक नई इकाई – नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) बन गई। ओली और दहल नई पार्टी के सह-अध्यक्ष थे, जबकि ओली ने प्रधानमंत्री का पद भी संभाला था।

हालांकि जल्द ही ओली और दहाल के बीच मतभेद शुरू हो गए, खासकर सत्ता के बंटवारे को लेकर। दोनों ने बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद पर सहमति जताई थी, जिसमें ओली पांच साल के कार्यकाल के पहले आधे समय तक पद पर बने रहेंगे और उसके बाद दहाल के लिए जगह खाली कर दी जाएगी। लेकिन ओली द्वारा समझौते का सम्मान करने से इनकार करने और विभिन्न अन्य मुद्दों के कारण दोनों और नवगठित पार्टी में उनके अनुयायियों के बीच संबंधों में खटास आ गई, जिसके कारण मार्च 2021 में एनसीपी भंग हो गई।

चीन ने ओली और दहाल के बीच मतभेदों को सुलझाने की पूरी कोशिश की थी और इस कार्य के लिए काठमांडू में अपने तत्कालीन दूत होउ यांकी को तैनात किया था। यांकी ने एनसीपी में टूट को रोकने के प्रयास में न केवल ओली और दहल के साथ, बल्कि अन्य कम्युनिस्ट नेताओं और देश की तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के साथ भी लगभग दस महीनों में अनगिनत बैठकें की। लेकिन ये सभी प्रयास विफल हो गए। मुख्य रूप से ओली की दहाल के साथ सत्ता साझा करने की जिद के कारण। मार्च 2021 में एनसीपी को भंग कर दिया गया और ओली और दहाल ने अपनी-अपनी पार्टियों को पुनर्जीवित कर दिया।

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