नेपाल में लोकतंत्र के नाम पर चीन की हिमायत से जनता त्राहि-त्राहि ,राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग पकड़ने लगा जोर 

भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी में भी हिंदूवादी संगठनों और राजशाही समर्थकों ने किया जोरदार प्रदर्शन 

सार

नेपाल में लोकतंत्र आने के बाद से ही चीन का दबदबा भी बढ़ने लगा। वहीं राजनीतिक अस्थिरता से परेशान लोग चाहते हैं कि एक बार फिर राजशाही की वापसी हो। वे नेपाल को दोबारा हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इन्हीं सब मांगों को लेकर हिंदू वादी संगठनों और राजशाही की मांग को लेकर लुंबिनी में भी हुआ जोरदार प्रदर्शन  

मनोज कुमार त्रिपाठी 

भैरहवा ! नेपाल में लोकतंत्र के नाम पर जनता ठगी हुई महसूस करने लगी है। राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग ने हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया है। लोग सड़कों पर उतर आए हैं और सुरक्षाबलों के साथ झड़पें होने लगीं। बीते 15 गते को राजधानी काठमांडू समेत कई इलाकों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों में झड़प हो गई। कई जगहों पर आगजनी हुई और कम से कम दो लोगों की मौत हो गई। नेपाल की सरकार ने सेना को उतार दिया है और कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है। बता दें कि 2008 में इसी जनता ने राजशाही को खत्म करके लोकतंत्र पर भरोसा जताया था। हालांकि लोकतंत्र के नाम पर वहां की कम्युनिस्ट सरकार केवल चीन की हिमायती बनकर रह गई। इसके लिए उसने नेपाल के लोगों के हितों को भी दांव पर लगा दिया। ऐसे में राजशाही समर्थक संगठनों ने जनता को एक बार फिर राजशाही की मांग करने के लिए तैयार कर दिया। अब संगठन पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह की वापसी को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।

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स्थिर नहीं हो पाई राजनीति

नेपाल में जब राजशाही का खात्मा हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई तो लोगों को उम्मीद थी कि बहुत कुछ अच्छा होने वाला है लेकिन पिछले 16 साल में ही नेपाल में 10 सरकारें बदल गईं। कुर्सी और गठबंधन के लिए विवादों के बीच जनहित की योजनाएं लागू ही नहीं हो पाईं। सरकारों में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया। वहीं चीन भी विकास के नाम पर शोषण करने पर तुल गया। भारत के साथ भी संबंध खराब होने लगे। अब लोगों का मानना है कि मजबूत केंद्रीय नेतृत्व और प्रजा हित केवल राजशाही में ही संभव है।

नेपाल के इतिहास में कई ऐसे नरेश हुए जिनके शासनकाल में जनता काफी संतुष्ट थी। लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती थी। लोकतंत्र में भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से लोग परेशान हो गए हैं। ऐसे में उन्हें पुराने दिन याद आने लगे हैं। नेपाल के राजा वीरेंद्र को भी लोग अच्छा शासक मानते थे। 19 फरवरी को पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। उनके समर्थन में लोगों ने मोटरसाइकल रैली निकाली। उन्होंने ही यह संदेश दिया, ‘राजा लाओ, देश बचाओ।’

240 सालों से राजशाही और हिंदू राष्ट्र था नेपाल

राजशाही के दौरान नेपाल की पहचान एक हिंदू राष्ट्र के तौर पर थी। हालांकि यहां लोकतंत्र आने के बाद कम्युनिस्ट हावी हो गए। इतिहास पर भी नजर डालें तो नेपाल कभी किसी का उपनिवेश नहीं रहा। यहां राजशाही में स्थिरता थी। नेपाल में बड़ी आबादी हिंदुओं की है और उनका मानना है कि केवल राजशाही में ही उनकी संस्कृति का संरक्षण हो सकता है। नेपाल के संविधान में इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया था। हालांकि लोगों का मानना है कि यह हिंदू बहुल देश है। ऐसे में इसे धर्मनिरपेक्ष नहीं घोषित करना चाहिए। इससे नेपाल की संस्कृति को नुकसान पहुंचता है।

नेपाल में 1990 में ही लोकतंत्र के लिए आंदोलन शुरू हुआ था। इसी के बाद नेपाल में मल्टी पार्टी सिस्टम शुरू हो गया था। राजा महेंद्र शाह के बाद उनके बेटे वीरेंद्र शाह ने सरकार के साथ मिलकर संवैधानिक राजा के रूप में काम किया। एक जून 2001 में राजपरिवार में नरसंहार हुआ और राजा वीरेंद्र शाह समेत परिवार के कई सदस्य मार दिए गए। इसके बाद ज्ञानेंद्र शाह ने गद्दी संभाली।

2005 में उन्होंने देश में लोकतंत्र को खत्म करके सेना का शासन लागू कर दिया। इसके बाद उनके इस कदम का विरोध होने लगा। 2008 में यहां राजशाही को खत्म करके नेपाल को गणतंत्र घोषित कर दिया गया।

 

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