राजा समर्थकों की सरकार के खिलाफ आंदोलन की तैयारी
ओली सरकार और राजावादी समर्थकों के बीच फिर होगी जोर आजमाइश
राजा समर्थक व हिन्दूवादी संगठनों ने तैयार की है आंदोलन की रूपरेखा
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
काठमांडू! किसी बड़े आंदोलन की रणनीति के तहत काठमांडू में राजावादी समर्थक और हिन्दूवादी संगठन फिर इकट्ठा हो रहे हैं। पिछले 28 मार्च को राजधानी में तिनकुने की हिंसात्मक आंदोलन के बाद कुछ दिनों तक शांति थी लेकिन अचानक उनकी सक्रियता से प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार और गणतंत्र समर्थकों में बेचैनी बढ़ गई है।
राजा समर्थक व हिन्दूवादी संगठनों ने नेपाली गणतंत्र दिवस 29 मई को हिंदू राष्ट्र तथा राजशाही की मांग
राजावादियों से इतना डर क्यों?
राज संस्था और हिन्दू राष्ट्र की वकालत करने वाला मुख्य दल राप्रपा है। यह संसद का पांचवां सबसे बड़ा दल है, जिसके प्रतिनिधि सभा में 17 सांसद है लेकिन इसके जनसमर्थन में बढ़ोत्तरी की बजाय गिरावट देखी गई है। ऐसे में सवाल है कि क्या मौजूद राप्रपा के साथ जुड़े कुछ और राजनीतिक दलों के नारे और जुलूस से ही राज संस्था की वापसी संभव है? और क्या सिर्फ पूर्व राजा की इच्छा से ही जनता उनका समर्थन करने लगेगी?
राजनीतिक विश्लेषक कृष्ण पोखरेल का मानना है कि यदि गणतंत्रवादी चुप रहते तो राजावादी और उत्साहित हो जाते, इसलिए उन्होंने प्रतिक्रिया दी है। हालांकि, उनका सुझाव है कि सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होगा, अब काम करके दिखाना होगा। जनता को वास्तविक बदलाव का अनुभव दिलाना होगा, तभी राजा-राजा कहने वालों की आवाज बंद होगी।
लेकर बहुत बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की है। इस बार की रैली में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के साथ अन्य दल भी आने के संकेत दे दिए हैं। यूं तो राजा समर्थक आंदोलनकारियों ने इस आंदोलन से पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र को भले ही दूर रखा है लेकिन नेपाल के पल-पल की घटना पर नजर रखने वाले नेपाली जानकारों का कहना है
कि जनआन्दोलन समिति’ के बैनर तले आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
इन आंदोलनकारियों ने अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है और यह कहा कि जब तक लक्ष्य हासिल नहीं होता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। जैसी कि खबरें आ रही हैं, उस हिसाब से नेपाली गणतंत्र दिवस 29 मई को ओली सरकार और राजावादियों के बीच संघर्ष का दिन हो सकता है।

राजेन्द्र लिंगदेन के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, राष्ट्रीय शक्ति नेपाल, नेपाली कांग्रेस (वीपी), शिव सेना नेपाल, नेपाल प्राज्ञिक मंच,आदि राजनीतिक दल यदि पहली बार एक मंच पर आ रहे हैं तो यह बिना पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र की सहमति के संभव नहीं है। ये सभी गुट नवराज सुवेदी के नेतृत्व में बनी ‘राज संस्था पुनर्स्थापना संयुक्त राजावादी गुटों के इस नए जोश और एकता को देखते हुए गणतंत्रवादी दल फिर से आक्रामक हो उठे हैं। गणतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट हुए ये नेता संसद और सड़कों से ही पूर्व राजा और उनके समर्थकों पर हमला बोल रहे हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में भाषण देते हुए कहा था कि संविधान और कानून की दुहाई देकर माइक फोड़ने तक चिल्लाने वाले साथी अब लोकतांत्रिक प्रणाली के भीतर ही लोकतंत्र को उलटने की बात कर रहे हैं।