नेपाल में राजशाही समर्थक और लोकतंत्र समर्थकों के बीच खिंची तलवारें, प्रचंड ने की राजदरबार नर संहार की जांच की मांग

बीते दिनों काठमांडू की सड़कों पर पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र की रैली में उमड़े जनसैलाब से ओली और प्रचंड दोनों घबराए 

उमेश चन्द्र त्रिपाठी 

काठमांडू! नेपाल में राजशाही समर्थक और लोकतंत्र समर्थकों के बीच तलवारें खिंच गई है। पिछले दिनों पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र के स्वागत में उमड़े जनसैलाब से राजशाही की मांग करने वाले इस तरह उत्साहित हैं कि वे हजारों की संख्या में पूर्व राजदरबार नारायणहिटी के समक्ष भी राजा के समर्थन में जोरदार प्रदर्शन किए। पूर्व नरेश के खिलाफ प्रचंड के एक बयान से गुस्साए राजा वादियों ने गणतंत्र मुर्दाबाद के नारे तक लगाए गए।

राजशाही के पक्ष में बढ़ रहे लोगों की संख्या से ओली सरकार ही नहीं घबराई है, पूर्व पीएम व राजशाही के विरुद्ध चले जनयुद्ध के नायक प्रचंड भी घबराए हुए हैं। ढाई दशक पूर्व हुए राजा वीरेंद्र सहित उनके पूरे परिवार की हत्या के मामले की जांच के लिए आयोग गठन की उनकी मांग इसी घबराहट का नतीजा है। 

राजदरबार नरसंहार के नाम से चर्चा में आए उस घटना का पर्दाफाश किए बिना इस घटना की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई। निश्चित रूप से राजदरबार नरसंहार की जांच होनी चाहिए और इसमें लिप्त दोषियों का नाम भी सामने आना चाहिए लेकिन जो मांग प्रचंड अब कर रहे हैं, इसकी जरूरत तब क्यों नहीं महसूस हुई जब वे स्वयं नेपाल के पीएम होते रहे? प्रचंड के अब इस मांग पर आम धारणा यह है कि यह पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र पर कानूनी शिकंजा कसने की कोशिश है। कुछ दिन पूर्व नेपाल चीन बार्डर पर स्थित सिंधुपालचोक में कार्यकर्ताओं की मीटिंग में प्रचंड ने पूर्व नरेश पर दरबार नरसंहार का दोषी बताते हुए उन्हें गोल्ड का तस्कर तक कह डाला था। प्रचंड के इस बयान के बाद राजा समर्थक दल राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने प्रचंड का पुतला भी फूंका था।

नेपाल में अचानक उभरे राजा समर्थन के स्वर के बीच चीन ने भी काठमांडू में अपनी सक्रीयता बढ़ा दी है। पहले से ही भारत विरोधी रहे ओली को पूर्व राजा के समर्थन में उमड़े जनसैलाब में भारत के प्रखर हिंदूवादी नेता व यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की तस्वीर भारत विरोध का नया हथकंडा मिल गया है। चीन इस हथकंडे को भरपूर खाद-पानी देने की कोशिश में है। सत्तारूढ़ एमाले ने चीन का राग अलापना शुरू कर दिया है।

काठमांडू में फाउंडेशन फार पीस, डेवलेपमेंट एंड सोशलिज्म द्वारा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और नेपाल चीन संबंध पर चर्चा के लिए आयोजित “कास्ठमंडप संवाद” कार्यक्रम में प्रतिनिधि सभा अध्यक्ष देवराज घिमिरे ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नेपाल के सतत विकास के लिए चीन के साथ सहयोग को और अधिक प्रभावी बनाते हुए आपसी हित के क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता है।

बता दें कि चीन की परियोजना बीआरआई को लेकर नेपाल के राजनीतिक दलों में अंतर्विरोध है। प्रधान मंत्री ओली चीन के काफी करीब हैं। इस परियोजना के जरिए चीन नेपाल में एकाधिपत्य जमाने की तैयारी कर चुका है। आनन-फानन में नेपाल चीन सहयोग विषय पर कार्यक्रम आयोजित करना नेपाल के राजनीतिक दलों में चर्चा का विषय बना हुआ है। पूर्व में काठमांडू को काष्ठमंडप के नाम से जाना जाता था। चीन नेपाल सहयोग पर चर्चा के लिए काष्ठमंडप बैनर का नामकरण भी चर्चा में है।

जानकारों का कहना है नेपाल चीन सहयोग पर चर्चा में अचानक आई तेजी के पीछे नेपाल में राजशाही के समर्थन में उठ रही आवाज है। समझा जाता है कि ओली अब खुलकर चीन के साथ आने की कोशिश में हैं।

प्रतिनिधि सभा स्पीकर घिमिरे ने स्पष्ट किया कि एक अच्छे दोस्त और करीबी पड़ोसी के रूप में, नेपाल को चीन की प्रगति पर गर्व है और वह व्यापक आर्थिक साझेदारी के माध्यम से चीन के अद्वितीय विकास और समृद्धि से लाभ उठाना चाहता है। उन्होंने कहा, “हम नेपाल के विकास प्रयासों में चीन के साथ सहयोग और सहयोग की अत्यधिक सराहना करना चाहते हैं।

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