कक्षा 12वीं के छात्र की कलम से निकली राष्ट्रभक्ति की गूंज – “ऑपरेशन सिंदूर: शौर्य और प्रतिशोध की गाथा”

मनोज कुमार त्रिपाठी 

गोरखपुर, गोरखनाथ: देश के भविष्य कहे जाने वाले छात्र कभी-कभी ऐसा कुछ रच जाते हैं, जो पूरे देश को गर्व से भर देता है। ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कक्षा 12वीं के एक छात्र ने, जिसकी लेखनी से निकली कविता “ऑपरेशन सिंदूर: शौर्य और प्रतिशोध की गाथा” यह रही ।

पढ़े पूरी कविता –

“ऑपरेशन सिंदूर: शौर्य और प्रतिशोध की गाथा”

भारत का एक छोटा सा हिस्सा, स्वर्ग वह कहलाता है, जहाँ की फिजा में प्रेम बहता, हर मन मुस्काता है।

हर साल जन का कई समूह वहाँ घूमने जाता है, प्रकृति की गोद में सुकून का क्षण वहाँ पाता है।

२२वीं तारीख उस दिन, लोग घूमने गए थे, आशा थी कि खुशियों में पल वो भर गए थे।

परिवार के साथ खुशी के एक पल बिताने गए थे, पर्वतों की छाँव में कुछ गीत भी गाए थे।

देखी न गई खुशी उनसे, हथियार उन्होंने उठाया था, अंधेरों के दलालों ने मासूमों पर साया था।

धर्म पूछ के उन सबने नरसंहार मचाया था, इंसानियत के नाम पर उन्होंने कलंक लगाया था।

छीना सिंदूर मासूमों का, गोली छाती में उतरी थी, आँखों में डर, दिलों में चीख, साँसें भी अधूरी थी।

भारत ने पहली बार देखी ऐसी कहानी थी, जो हर दिल की पीड़ा और आह की निशानी थी।

देश का करना चाहते थे बंटवारा, हिंदू – मुस्लिम का था इरादा, फिर भी न बँट पाया ये वतन, ये था भारत का वादा।

पर भूल गए थे भारत की शक्ति, हम सब हैं एकता की मूर्ति, संघर्ष में भी हम साथ हैं, ये है सच्ची भारतीय सूरत।

कोई न कर पाया था बंटवारा, पर घाव दे गया था गहरा, पर अबकी बार वो चुप न था, लहू उबला था सहरा।

खौल उठा खून देश का, बदले की आस जागी थी, एक चिंगारी सीने में, अब अग्निवर्षा बन भागी थी।

26 मासूमों के बदले की यह एक कहानी थी, जिसने हर आँसू को क्रोध में बदल डाला बेमानी थी।

रात्रि का हुआ था समय, 7वी तारीख — उस रात गूंज उठा भारत, था न्याय का आदेश।

वो विश्व ने पहली बार देखी भारत की ऐसी मेजबानी थी, जहाँ रौशनी थी रॉकेट की और वीरता की कहानी थी।

युद्ध किया, दागीं मिसाइलें, 9 ठिकानों को उड़ाया, पर मासूमों को छोड़, सिर्फ़ आतंकियों को हराया।

पर उन आतंकियों के जैसे किसी मासूम को न सताया, यह न्याय की परिभाषा थी, यही भारत का साया।

हर बार सबूत माँगने वालों ने इस बार खुद क़बूल कर लिया, जो पहले चुप थे, अब बोले — भारत ने सही किया।

भारत की बेटियों के सिंदूर का बदला भारत ने ऑपरेशन सिंदूर से लिया, शौर्य, संयम और साहस से, इतिहास फिर से लिखा गया।

बाज़ न आया पाक, अभी भी कर रहा मनमानी, पर भूल गया शायद अब, हमारी जंग की रवानी।

पर शायद भूल गया है कारगिल के युद्ध की कहानी, जहाँ वीरों ने मिटा दी थी उसकी हर नापाक निशानी।

रखे भरोसा अपने देश पर, आएगी न हम पर कोई आँच, जब तक एक भी सैनिक है, सुरक्षा का होगा बाँध।

जिसको पहले डर कर रखता था आतंकवाद, अब खुद छुपा रहा है चेहरा, पहचान और जज़्बात।

अब खुद बचा रहा हमसे अपनी वो जान, क्योंकि भारत का प्रतिशोध अब बन चुका है आँधी-तूफान।

                 – अनिमेष उपाध्याय

 

यह कविता केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि एक ऐसी भावनात्मक पुकार है जिसमें शौर्य, पीड़ा, प्रतिशोध और राष्ट्रीय एकता की झलक मिलती है। 

छात्र ने मात्र अपनी लेखनी से यह साबित कर दिया कि देशभक्ति केवल सीमा पर ही नहीं, शब्दों में भी बह सकती है। यह कविता न केवल भारत के जख्मों को बयान करती है, बल्कि उनकी भरपाई की गर्जना भी करती है।

इस कविता में छात्र की भावनाएँ जितनी गहरी हैं, उतनी ही स्पष्ट है उसकी राष्ट्रभक्ति। यह लेखनी आने वाले समय में युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है, और यह सिद्ध करती है कि सच्ची आवाज़ बंदूक से नहीं, कलम से भी निकाली जा सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!