भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच 12 सदस्यीय पाकिस्तानी सैन्य दल के काठमांडू में प्रशिक्षण का मामला
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
काठमांडू! पहलगाम आतंकी हमले का दंश नेपाल को भी झेलना पड़ा है। बुटवल के एक नागरिक सुदीप न्योपाने को उस हमले में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। नेपाली लोग अमूमन किसी अन्य हिल स्टेशन पर नहीं जाते, क्योंकि नेपाल स्वयं एक हिमालयी देश है, जहां की वादियां और पहाड़ कश्मीर सरीखे ही हैं, लेकिन इधर कश्मीर निःसंदेह आतंक मुक्त था इसलिए वहां पर्यटकों की आवाजाही में इजाफा होने लगा था। टूरिस्ट व्यवसाय से जुड़ा हर कश्मीरी खुशहाल हो रहा था।
पहलगाम हमले से कश्मीर का टूरिस्ट उद्योग एक बार फिर छिन्न-भिन्न हुआ है। जाहिर है कश्मीर में जो शांति का माहौल था उससे भारत ही नहीं विदेशों के पर्यटक भी प्रभावित हो रहे थे। सुदीप न्योपाने और उनका परिवार भी उसमें से एक था, लेकिन इस परिवार को जो जख्म मिला, वह शायद ही फिर कभी इन्हें कश्मीर की ओर आकर्षित करने में कामयाब हो। ओली के नेतृत्व वाली हुकूमत ने इस पर दुख व्यक्त करते हुए आतंक के खिलाफ भारत के हर कदम पर खड़ा रहने का भरोसा दिया, लेकिन यह कैसा भरोसा था कि जब पहलगाम का बदला लेने के लिए भारत पाकिस्तान को जवाब दे रहा था तब पाकिस्तान के बारह सैन्य अफसर नेपाल में प्रशिक्षण के लिए पहुंच गए?
माना कि पाकिस्तान से नेपाल के रिश्ते भारत जैसे कटु नहीं है, लेकिन ओली सरकार क्या अपने नागरिक की हत्या पर पाकिस्तान से जरा भी गुस्सा नहीं हुई। वे कहते हैं कि नेपाल सरकार अपनी धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कदापि नहीं करने देगी तो क्या नेपाल में प्रशिक्षित पाकिस्तान के सैनिक भारत पर फूल बरसाते? भारत के लिए यह घटना चौंकाने वाली हो सकती है कि पाकिस्तान सशस्त्र बलों के विभिन्न संस्थानों में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके नेपाली सेना के पूर्व सैनिकों का एक सम्मेलन काठमांडू स्थित पाकिस्तानी दूतावास में आयोजित किया गया।
पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के विभिन्न संस्थाओं में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके नेपाली सेना के पूर्व सैनिकों का एक सम्मेलन काठमांडू स्थित पाकिस्तान दूतावास में आयोजित किया गया। इसके पहले पाकिस्तान के 12 सदस्यीय सैन्य अफसर नेपाल में 15 मई तक प्रशिक्षण पर हैं। नेपाली सेना के अनुसार पाकिस्तान के नेशनल सिक्योरिटी एंड वार कालेज के ये 12 पाकिस्तानी सैन्य अफसर 4 मई को एयर कमोडोर साद मंसूर अंसारी के नेतृत्व में नेपाल आए हैं। ये सभी पाकिस्तानी सैन्य अफसर 15 मई तक प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।
पिछले दिनों काठमांडू स्थित पाक दूतावास पर सम्मेलन में पाकिस्तान दूतावास के सैन्य सलाहकार कर्नल मुहम्मद अली अल्वी ने नेपाल और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच संबंधों और प्रशिक्षण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सशस्त्र बल नेपाली सेना की क्षमता निर्माण में भविष्य में भी सहयोग करता रहेगा। इतना ही नहीं नेपाल के पूर्व सेना प्रमुख राणा ने यहां तक कहा कि पाकिस्तानी संस्थानों के माध्यम से नेपाली सेना की क्षमता वृद्धि जैसे कार्यक्रम संस्था और इसमें भाग लेने वाले दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नेपाल में पाकिस्तान के राजदूत अबरार एच. हाशमी ने कहा कि नेपाल और पाकिस्तान के बीच संबंध आपसी विश्वास और हितों पर आधारित है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि दोनों देशों के बीच वर्तमान सैन्य संबंध भविष्य में और मजबूत होंगे और नई ऊंचाइयों तक पहुंचेंगे। नेपाल के निर्दलीय सांसद अमितेश कुमार सिंह ने प्रतिनिधि सभा की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि पहलगाम में हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कभी भी युद्ध छिड़ सकता है। ऐसी स्थिति में नेपाल सरकार को ऐसे किसी भी आयोजन से बचना चाहिए, जो पड़ोसी राष्ट्र की भावनाओं को आहत करता हो। उन्होंने कहा कि ऐसे वातावरण में पाकिस्तानी सेना के प्रतिनिधि मंडल को आमंत्रित करना पूरी तरह गलत है।
सांसद अमितेश कुमार सिंह ने उस विमान का भी विवरण दिया जिससे पाकिस्तानी सेना का प्रतिनिधि मंडल काठमांडू पहुंचा था। उन्होंने कहा कि साद मंसूर अंसारी के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना का प्रतिनिधि मंडल कतर एयरवेज की फ्लाइट संख्या 646 से आया था। सांसद ने कहा कि क्या इस समय हम किसी का पक्ष ले सकते हैं?
यह सही वक्त नहीं है।मेरा मतलब यह भी नहीं कि पाकिस्तानियों को नेपाल नहीं आना चाहिए, लेकिन उस आतंकी हमले में एक नेपाली नागरिक भी मारा गया था
गौरतलब है कि ओली भारत के विरोध में हो सकते हैं, नेपाल की जनता भी हो, ऐसा नहीं है और तमाम सारे विपक्षी दल भी ओली के सुर में सुर मिलाएं, ऐसा भी नहीं है। नेपाल में पाकिस्तानी सैन्य अफसरों की मौजूदगी की निंदा काठमांडू में खूब हुई। तमाम विरोधी दलों के नेताओं ने ओली के इस कदम को गैरवाजिव ठहराया।
नेपाली सेना के अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर जनरल विनोद बस्नेत ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह के तनाव के बाद नेपाल द्वारा पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को बुलाना रणनीतिक रूप से सही नहीं है।
यह बताने की जरूरत नहीं है कि नेपाल चीन की गोद में बैठने को बेताब है और भारत-पाक के बीच युद्ध जैसे हालात के दरम्यान चीन की क्या भूमिका थी? लेकिन भारत चीन के पहले नेपाल का न केवल पड़ोसी, बल्कि बड़े भाई जैसा मित्र राष्ट्र है। ओली को इतना तो जरूर सोचना चाहिए था कि यदि पाकिस्तान के सैन्य अफसरों का नेपाल में प्रशिक्षण जरूरी है तो वह इसे कम से कम भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे फायरिंग के समय तक होल्ड कर सकते थे। नेपाल में कोई भी सरकार हो, सभी कहते हैं कि नेपाल की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होगा, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाता। नेपाल की धरती से छिटपुट आतंकी घटनाओं को नजरंदाज भी कर दें तो 1999 में काठमांडू हवाई अड्डे से आतंकियों द्वारा भारतीय यात्रियों से भरे भारतीय जहाज का अपहरण कैसे भूला जा सकता है? अभी बुद्ध पूर्णिमा के दिन भारत सीमा से सटे भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी से ओली ने शांति, प्रेम और करुणा पर खूब लंबा चौड़ा ज्ञान बांटा। काश नेपाल के प्रधानमंत्री ओली बुद्ध के दिखाए मार्ग पर थोड़ा भी चल पाते।